Krishnanand Saraswati/ Sharma Ji k 4 bandar

Krishnanand Saraswati/  Sharma Ji k 4 bandar

Sunday, July 10, 2011

सत्य या मत

सत्य या मत

जैसे ही सत्य को शब्दों द्वारा प्रकट किया जाता, है वह मत हो जाता है / इसलिए सभी शास्त्र मत हैं, चाहे वह किसी भी धर्म के हों - शास्त्र यानि मतों (opinion) का सग्रह/ कोई भी शास्त्र सत्य का संग्रह नहीं है, ना हो सकता है /

काश दुनिया के सभी धर्मों को मानने वाले यह सत्य समझ जाएँ कि उनका जो शास्त्र ( Religious book) है वह एक मत है सत्य नहीं या केवल एक इशारा मात्र है सत्य की और / तब निश्चित ही धर्म के नाम पर आपसी झगडे बंद हो सकते हैं / क्योंकि हर धर्म और उसका शास्त्र दावा करता है सत्य का - दो सत्य कैसे हो सकते हैं - झगडे खडे हो जाते हैं /
( १. सत्य अनंत है शब्द सीमित होता है /
२. जैसे ही शब्द बोला जाता है , तो सुनने वाले के हाथों मे पहुँच जाता है और हर सुनने वाला अपनी व्याख्या कर लेता है /)
-------------------------------