21/ 11 / 2009
जीवन और मृत्यु
हम इस जागतिक सागर मे लहर मात्र है/ इस भाव को अपने भीतर खूब गहरे उतरने दो/ अपनी श्वास को उठती हुई लहर की तरह महसूस करना शुरू करो / तुम सांस लेते हो ; तुम सांस छोड़ते हो / जो सांस अभी तुमाहरे अन्दर जा रही है वह एक क्षण पहले किसी दूसरे की सांस थी / और जो सांस अभी तुमसे बाहर जा रही है वह अगले क्षण किसी दूसरे की सांस हो जाएगी / सांस लेना जीवन के सागर मैं लहरों के उठने - गिरने जैसा ही है / तुम अलग नहीं हो ,बस लहर हो / गहराई मे तुम एक हो / हम सब इकठे हैं , संयुक्त हैं / वैयक्तिता जूठी है , भ्रामक है / इसीलिए अहंकार एकमात्र बाधा है / वैयक्तिता जूठी है , वह भासती तो है , लेकिन सत्य नहीं है / सत्य तो अखंड है , सागर है, अद्वैत है /
यही कारण है की प्रत्येक धर्म अहंकार के विरोध मे है / जो व्यक्ति कहता है की इश्वर नहीं है , वह अधार्मिक नहीं भी हो ,लेकिन जो अहंकारी है वह अवश्य अधार्मिक है / धर्म के लिए निरहंकार जरुरी है ,बुनियादी है / और अगर तुम इश्वर मे विश्वास भी करते हो, लेकिन अहंकार भरे मन से विश्वास करते हो तो तुम अधार्मिक हो / अहंकार-रहित मन के लिए इश्वर मे विश्वास की भी ज़रूरत नहीं है; निरहंकारी होकर तुम लहर से चिपके नहीं रह सकते हो ; तुम्हे सागर मे गिरना ही होगा / अहंकार ही लहर से चिपका रह सकता है/ जीवन को सागर की भांति देखो और अपने को लहर मात्र समझो /
हमारी समस्या क्या है? समस्या यह है की लहर अपने आप को सागर से अलग मानती है / और अगर लहर अपने को सागर से अलग मानेगी तो उसे तुरंत या देर-सबेर मृत्यु का भय उसे अवश्य घेरेगा / लेकिन अगर लहर जन ले की मैं नहीं हूँ,सागर ही है तो उसे मृत्यु का कोई भय नहीं रह जायेगा / लहर तो मरती ही है , लेकिन सागर हमेशा-हमेशा ही रहता है / मै या तुम मर सकते हैं ; लेकिन जीवन नहीं मर सकता / अस्तित्व नहीं मरेगा , अस्तित्व तो लहराता ही जाता है / वह तुममे लहराया है ; वह दूसरों मे भी लहरा रहा है / और जब तुम्हरी लहर बिखर रही होगी, तो संभव है तुमाहरे बिखराव मे से ही दूसरी लहरें उठें / सागर हमेशा रहता है /
जब तुम अपने को लहर के रूप में अलग देख लेते हो और सागर यानि अरूप के साथ एक जान लेते हो ,एकात्म अनुभव करते हो , तो फिर तुम्हरी मृत्यु नहीं है / अन्यथा मृत्यु का भय होगा , प्रत्येक पीड़ा में , प्रत्येक संताप में ,चिंता में मृत्यु का भय मूलभूत है - चाहे तुम्हे इसका बोध न भी हो , लेकिन अपने अंतस में प्रवेश करोगे तो इसे पाओगे ही , तुम थर-थर काँप रहे हो , क्योंकि अहंकार के कारन तुम मरने वाले हो / तुम अनेक सुरक्षा के उपाय कर सकते हो , लेकिन कोई उपाय कम नहीं देगा ; धूल धूल में जामिलेगी /
कभी तुम को यह ख्याल आया की अभी तुम जिस रस्ते पर चल रहे हो , और जो धूल तुमाहरे जूते पर जमा हो रही है , हो सकता हो वह धूल किसी नेपोलियन , किसी हिटलर , किसी सिकंदर के शरीर की धूल हो / और यही हाल हम सबका होने वाला है / देर-सबेर धूल धूल मे मिल जाएगी , लहर विदा हो जायेगी / दो चीजें सदा याद रखना , रूप सदा लहर है और अरूप सागर है - रूप मृण्मय है , अरूप चिन्मय है , शाश्वत है/
और ऐसा नहीं है की तुम किसी दिन मरोगे , तुम प्रतिदिन मर रहे हो / बचपन मरता है, जवानी जनम लेती है / फिर जवानी मरती है और बुढ़ापा जन्मता है , और फिर बुढ़ापा भी मरता है और रूप विदा हो जाता है / प्रत्येक क्षण तुम मर रहे हो -हर बाहर जाने वाली सांस के साथ ; प्रत्येक क्षण तुम जन्म ले रहे हो - हर अन्दर आने वाली सांस के साथ / यह आपका पहला जनम नहीं है और न ही पहली मृत्यु होगी / तुम पहले भी जन्मे थे , पहले भी मरे थे , और न जाने यह चक्र कब तक चलेगा / तुम्हरा एक अंश मरता है ; दूसरा अंश जन्मता है / शरीरशाश्त्री कहते हैं की सात वर्षों मे तुमाहरे शरीर का कुछ भी पुराना नहीं बचता ; एक-एक चीज़, एक-एक कोष्ठ बदल जाता है / अगर तुम ७० साल जीते हो तो , आपका शरीर दस बार बदल जाएगा , वह भी पूरा का पूरा / यह परिवर्तन कोई अचानक नहीं होता , प्रत्येक क्षण हो रहा है /
तुम एक लहर हो और लहर को सतत बदलते रहना है , सतत गतिमान रहना है/ सागर सत्य है , ब्रह्म है / लहरें जनम लेती हैं ,विदा लेती हैं / यह चक्र ऐसे ही चलता रहेगा / एक ही इलाज किया जा सकता है -वह है इस लहर-रूप का साक्षी होना / और एक बार साक्षी हो गए तो अचानक उसका बोध हो जायेगा जो लहर के पार है ,जो लहर के पीछे है , जो लहर मे भी है लहर के बाहर भी है ,जिससे लहर बनती है और जो फिर भी लहर के पार है ; जो सागर है /
आँख से जो देखा जा सकता है वह रूप है ,और रूप को मिटना ही है- मृण्मय है / केवल अरूप शाश्वत है - चिन्मय है /
संत कबीर ने सही कहा है :
' राम मरे तो मैं मरूं , नहीं तो मरे बलाय,
अविनाशी का बालका मरे न मारा जाए /
' राम नाम सत्य है , बाकी सब माया है ( माया यानि जो नहीं है लेकिन सत्य की तरह भासती है )
प्रस्तुत कर्ता: के .के.शर्मा
Friday, November 20, 2009
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