'अहंकार और अस्मिता '
क्या राज ठाकरे जैसे लोग 'अहंकार और अस्मिता' मे फर्क जानते हैं?
नहीं.
चलो दोस्तों फर्क को समझने का प्रयास करते हैं /
संस्कृत मे दो शब्द हैं ' मैं' के लिए -- 'अहंकार' और 'अस्मिता'
अहंकार ' मैं ' का गलत बोध है / अहंकार का ' मैं ' दूसरे के विरोध मे है , एक नकरात्मक भाव है / ‘ नहीं ' का भाव /
अस्मिता ' मै ' का सम्यक बोध है / अस्मिता का ' मै ' किसी के विरोध मे नहीं है, एक विधायक भाव है / ' हाँ ' का भाव /
दोनों मे ' मै ' हैं / एक अशुद्ध है / नहीं अशुद्धता है / तुम नकारते हो, नष्ट करते हो/ नहीं ध्वंसात्मक है/ इसका प्रयोग हरगिज नहीं करना चाहिए/ जितना तुमसे हो सके इसे फैंक देना / दूसरा शुद्ध है / हाँ क्रियात्मक है, सुंदर है /
'अस्मिता' अहंकारविहीन ' अहं ' है / इसमें किसी के विरुद्ध ' मै ' होने कि अनुभूति नहीं होती/ यह केवल स्वंयं का अनुभव है, स्वंयं को किसी के विरुद्ध रखे बिना/ यह अपने समग्र अकेलेपन को अनुभव करना है / और समग्र अकेलेपन का अनुभव एक शुद्धतम अवस्था है/ जब हम कहते हैं, ' मैं हूँ ' तो ' मैं ' अहंकार है और ' हूँ ' है अस्मिता / अस्मिता मे केवल अनुभूति है हूँ-पन की / किसी के विरुद्ध नहीं, मात्र होने को अनुभव करना, मात्र अस्तित्व को अनुभव करना/
आपका मित्र,
के. के. शर्मा
( कृष्ण कुमार शर्मा)
URL: www. krishnanand101.blogspot.com
Wednesday, January 27, 2010
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