Krishnanand Saraswati/ Sharma Ji k 4 bandar

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Friday, October 8, 2010

Gurudev Rabindranath Tagore and Gandhi ji

गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी
एक बार महात्मा गाँधी बंगाल गए / गुरुदेव रबिन्द्रनाथ को गाँधी जी के दौरे के बारे मे पता लगा तो उन्होने गाँधी जी को अपने यहाँ आने का निमंत्रण दिया, जिसे गाँधी जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया/

गुरुदेव के बागीचे मे शाम की चाय का लुत्फ़ लेते-लेते दोनों भारत के बारे मे चर्चा भी कर रहे थे/ समय बहुत अच्छा बीत रहा था, मौसम भी बहुत खुशगवार था, और क्यों ना हो , भारत की दो महानतम हस्तियाँ मौसम को महका रहीं थी/

तभी गाँधी जी ने गुरुदेव को कहा: मेरा शाम का घुमने का समय हो गया है, तो अब बाकी चर्चा घुमने के बाद करेंगे/
गुरुदेव बोले अगर आप को एतराज ना हो तो मैं भी आपके साथ सैर कर लेता हूँ/
गाँधी जी ने कहा बहुत अच्छी बात है, आप को भी घुमने का शौक है/
गुरुदेव बोले मै घर के भीतर जा कर दो मिनिट मे आता हूँ/
गांधी जी को बाहर इंतज़ार करते-करते १५ मिनिट हो गए, गुरुदेव बाहर आ ही नहीं रहे/
गांधी जी ने गुरुदेव को आवाज दी -- गुरुदेव का कोई जवाब नहीं/
गांधीजी खिड़की के पास गए, और खिड़की से जो देखा, वोह एकदम गाँधी जी के लिए चौंका देने वाला था/ उन्होने देखा गुरुदेव ने कपडे
बदल लिए हैं और बहुत फुर्सत से गुरुदेव अपने बाल और दाढी संवार रहे हैं/
गाँधी जी बोले समय बेकार मे बीता जा रहा है और आप हैं की......बच्चों और महिलाओं की तरह सज-धज रहें हैं और समय व्यर्थ गवां रहे
हैं....
दो मिनिट के बाद गुरुदेव बाहर आ कर गाँधी जी को बोले आप कृपया गलत ना लें, दरअसल मै अपने चाहने वालों का दिल नहीं दुखाना
चाहता, मै सुन्दरता का कवि हूँ, खुद असुंदर कैसे रह सकता हूँ......
गाँधी जी को अपनी गलती का अहसास हुआ, और उन्होने गुरुदेव से क्षमा-याचना की/

...... और एक हमलोग हैं की ...छोटी-छोटी बात का बतंगड़ बना कर, बुरा मान कर मुहं फुला कर बातचीत करना भी बंद कर देते हैं.....

आओ अभिमान भुला कर , जीने का आनंद लूटें, वो आनंद बरसाने वाला आनंद बरसाने मे कोई कंजूसी नहीं दिखा रहा तो हम आनंदित
होने मैं क्यों कंजूसी दिखाएँ.............
...याद रहे उन्मुक्त हंसी, मुक्त करती है/

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