वेदांत से परिचय
वेदांत दर्शन है, और वेद प्रमाण / भारतीय अध्यात्म में, दर्शन का मतलब 'Philosophy' नहीं होता - दर्शन, यानि जो दृष्टि देता है /
भारतीय दर्शन ९ भागों मे विभाजित किया गया है -
६: आस्तिक दर्शन ( वेद जिनके प्रमाण हैं), और ३ नास्तिक दर्शन ( वेद जिनके प्रमाण नहीं हैं)
६: आस्तिक दर्शन
१. न्याय
२.वैशेषिक
३. सांख्य
४. योग
५. पूर्व मीमांसा
६. उत्तरी मीमांसा
३ नास्तिक दर्शन
१. चार्वाक
२. जैन
३. बोद्ध
यहाँ से आगे आपको किसी 'सदगुरु' का सहारा लेना पड़ेगा /
कुछ वेदांत के 'आकाश के सितारे'
१. भारतीय अध्यात्म अनुभव की बात नहीं, अनुभोक्ता को जानने के बोध की बात है/ यानि अध्यात्म, स्वंय की खोज है, स्वंय का बोध है/
२. जहाँ मस्तिष्क और ह्रदय मिलते हैं, वहीँ से धर्म शुरू होता है, अगर मस्तिष्क अकेला हो जाए, ह्रदय को दबा दे, तो विज्ञान पैदा होता है, अगर ह्रदय अकेला रहे, मस्तिष्क को हटा दे तो कल्पना का जगत, यानि काव्य, संगीत, चित्र -मतलब कला पैदा होती है/
विज्ञान और कला द्वन्द हैं/ धर्म समन्वय है, सिंथेसिस है/
३. पूर्ण और शून्य की कोई मात्रा (Quantity) नहीं होती/ इसलिए पूर्ण को शून्य, और शून्य को पूर्ण कहा जा सकता है / क्योंकि कहने मे कोई भी चीज़ सापेक्ष (Relative) होती है, केवल मात्रा का अंतर होता है/ एवं शून्य को या पूर्ण को सापेक्ष रूप से अभिव्यक्त नहीं कर सकते /
शून्य वह, जिसमे से कुछ और निकालने को बाकी ना बचे - नकरात्मक
पूर्ण वह जिसमे कुछ और मिलाने को बाकी ना बचे - विधायक ढंग
४. परिवर्तन संसार का नियम है, और परिवर्तन मे शाश्वत कि खोज 'धर्म' है - सार है सब वेदों, सब बाईबलों, सब कुरानों का / और ध्यान रहे परिवर्तन, अपरिवर्तित के कारण ही संभव है /
५.प्रेम और पाप ये दो विरोधी स्थितियां हैं, जब भी पाप होता है, प्रेम नहीं हो सकता -या कहो इसीलिए पाप कर पाते हो/ सभी पाप प्रेम के आभाव से पैदा होते हैं / अगर प्रेम है तो पाप असंभव है /
६. ज़रूरत कभी पूरी नहीं हो सकती, यह उसका स्वभाव है -ज़र्रूरत की केवल अस्थाई परिपूर्ति होती है /
७. निर्णiयक दृष्टिकोण, निर्दोष विमर्श, निरंतर मेहनत
निश्चित सफलता
Saturday, November 6, 2010
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