Krishnanand Saraswati/ Sharma Ji k 4 bandar

Krishnanand Saraswati/  Sharma Ji k 4 bandar

Thursday, November 11, 2010

2 most important questions for a human being:

Hi All,
2 most important questions for a human being:
Q.1. Am i ageing or maturing?
Q.2. Who am i ?

And if your answer to Q.1 is right then only you can reach the stage of Q.2
So let us talk about Q.1 and try to know our personal answer. Everybody is ageing, that's why everybody become old. But are we maturing also with ageing.And answer for 95% of the present population is a shocking -NO. Why ? Because maturity is an inner growth.
While ageing, we do nothing but ageing happens physically and automatically. Every child after birth becomes old as clock time passes. Maturity is something, which has to be brought in one's life - And it can come out of awareness only. When a person ages with experiencing the life with full awarenes, he becomes mature. 2 simple tests to know, whether a person is ageing or maturing.
a). A mature person never commits the same mistake again but aging person goes on committing the same mistakes again and again as he never learns from the greatest teacher mistake.
b). A mature person never worries and decides for the future. The maturity itself takes care automatically. Matured person lives in the present moment with full energy and awakening. And his living in present moment decides how the tomorrow is going to be.
So if your answer to the Q.1 is a genuine Yes, please proceed to Q.2. Cosmic energy will also assist you in getting the answer to Q.2 .
Thanks and Regards


"Its Nice To Be an important Person . But, It is more Important to be a Nice Person."
"I believe it prudent to keep an open mind to new ideas, not so open that you blindly accept every new concept."
" The Relationship which needs effort to maintain will never be true & which is true will never need efforts to maintain"
"Be your self, original is always better than a copy."
KKSharma

Saturday, November 6, 2010

INTRODUCTION TO VEDANT

वेदांत से परिचय
वेदांत दर्शन है, और वेद प्रमाण / भारतीय अध्यात्म में, दर्शन का मतलब 'Philosophy' नहीं होता - दर्शन, यानि जो दृष्टि देता है /
भारतीय दर्शन ९ भागों मे विभाजित किया गया है -
६: आस्तिक दर्शन ( वेद जिनके प्रमाण हैं), और ३ नास्तिक दर्शन ( वेद जिनके प्रमाण नहीं हैं)
६: आस्तिक दर्शन
१. न्याय
२.वैशेषिक
३. सांख्य
४. योग
५. पूर्व मीमांसा
६. उत्तरी मीमांसा
३ नास्तिक दर्शन
१. चार्वाक
२. जैन
३. बोद्ध
यहाँ से आगे आपको किसी 'सदगुरु' का सहारा लेना पड़ेगा /
कुछ वेदांत के 'आकाश के सितारे'
१. भारतीय अध्यात्म अनुभव की बात नहीं, अनुभोक्ता को जानने के बोध की बात है/ यानि अध्यात्म, स्वंय की खोज है, स्वंय का बोध है/
२. जहाँ मस्तिष्क और ह्रदय मिलते हैं, वहीँ से धर्म शुरू होता है, अगर मस्तिष्क अकेला हो जाए, ह्रदय को दबा दे, तो विज्ञान पैदा होता है, अगर ह्रदय अकेला रहे, मस्तिष्क को हटा दे तो कल्पना का जगत, यानि काव्य, संगीत, चित्र -मतलब कला पैदा होती है/
विज्ञान और कला द्वन्द हैं/ धर्म समन्वय है, सिंथेसिस है/
३. पूर्ण और शून्य की कोई मात्रा (Quantity) नहीं होती/ इसलिए पूर्ण को शून्य, और शून्य को पूर्ण कहा जा सकता है / क्योंकि कहने मे कोई भी चीज़ सापेक्ष (Relative) होती है, केवल मात्रा का अंतर होता है/ एवं शून्य को या पूर्ण को सापेक्ष रूप से अभिव्यक्त नहीं कर सकते /
शून्य वह, जिसमे से कुछ और निकालने को बाकी ना बचे - नकरात्मक
पूर्ण वह जिसमे कुछ और मिलाने को बाकी ना बचे - विधायक ढंग
४. परिवर्तन संसार का नियम है, और परिवर्तन मे शाश्वत कि खोज 'धर्म' है - सार है सब वेदों, सब बाईबलों, सब कुरानों का / और ध्यान रहे परिवर्तन, अपरिवर्तित के कारण ही संभव है /
५.प्रेम और पाप ये दो विरोधी स्थितियां हैं, जब भी पाप होता है, प्रेम नहीं हो सकता -या कहो इसीलिए पाप कर पाते हो/ सभी पाप प्रेम के आभाव से पैदा होते हैं / अगर प्रेम है तो पाप असंभव है /
६. ज़रूरत कभी पूरी नहीं हो सकती, यह उसका स्वभाव है -ज़र्रूरत की केवल अस्थाई परिपूर्ति होती है /
७. निर्णiयक दृष्टिकोण, निर्दोष विमर्श, निरंतर मेहनत
निश्चित सफलता